मन्दसौर। प्रकाश शर्मा की रिपोर्ट 08889179492 पुण्य सलिला और मंदसौर की जीवन धारा शिवना मैया की अविरलता और निर्मलता के लिए नगर पालिका और सामाजिक संस्थाओं के प्रयास बीते करीब दो दशकों से बेशक कामयाब न हो सके हों, लेकिन 70 दिन के लॉकडाउन के दौरान शिवना नदी ने खुद ही अपने को साफ कर लिया है। बिना किसी प्रयास के लॉक डाउन ने प्रकृति को एक बार फिर निर्मल और स्वच्छ कर दिया है जिसके कारण मंदसौर में फिर से शिवना मैया जी उठी है, मटमैला रहने वाला पानी फिर से निर्मल हो गया है और कल -कल नाद कर रहा है।
नदी का जल स्वच्छ होने साथ ही नजदीक जाने पर उसकी तली भी इस वक्त दिख रही है। लॉकडाउन से पहले काले, मटमैले पानी से लबालब नदी दूर से नाले सरीखी नजर आती थी। शिवना नदी को स्वच्छ और निर्मल करने के लिए बरसों से कभी प्रशासन और नपा के साथ जन अभियान परिषद तो कभी दूसरे सामाजिक संस्थाएं अभियान चला रही है प्रतिवर्ष गर्मी में शिवना शुद्धिकरण का अभियान चलता है लगातार अभियान के बाद भी शिवना इतनी शुद्ध नहीं दिखी जितनी 70 दिन के लक डाउन में दिख रही है यानी कोरोना वायरस से पैदा हुए संकट के इस दौर में शिवना ने खुद को पुनर्जीवित करने का अपना मॉडल पेश कर दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर नगर पालिका और सरकार ने लॉकडाउन के दौरान नदी के इस नैसर्गिक मॉडल को समझ लिया और उसके अनुसार योजना बनाईं तो बगैर बड़े पैमाने पर मानवीय व वित्तीय संसाधन लगाए नदियों को साफ-सुथरा रखा जा सकेगा।
फैक्ट्री का वेस्ट और शहर का गंदा पानी मिलता है नदी में
मंदसौर की प्रमुख औद्योगिक इकाई का वेस्ट और पूरे शहर भर का गंदा पानी शिवना नदी में मिलता है। इसे रोकने के लिए नगरपालिका लंबे समय से केवल प्रयोग आधारित योजनाएं ही बना रही है।जिसका फायदा अब तक नहीं मिल रहा है प्रदेश की सरकार ने भी 6:30 करोड़ रुपए की लागत से शिवना शुद्धिकरण की योजना बनाई लेकिन वह भी धरातल पर नहीं उतर पाई इसके साथ ही शिवना नदी में बड़े पैमाने पर कपड़े धोने के कारण मानव दखल भी खूब है, जिससे शिवना नदी प्रदूषित हो रही है। उसका शीतल जल मेला हो रहा है लेकिन इस वक्त औद्योगिक वेस्ट कम है। फिर, बाजार बंद होने से सीवर का लोड भी कम हुआ है। साथ ही, नदी के जल में इंसानों का दखल कम है, कपड़े नही धूल रहे हैं। इससे नदी अपनी गाद को तली तक छोड़ बह रही है। इसका मिला-जुला असर साफ-सुथरे पानी के तौर पर दिख रहा है।इससे नदी की सेहत बेहतर हुई है। नदी के खुद को पुनर्जीवित करने के नैसर्गिक मॉडल का भविष्य में इस्तेमाल किया जा सकता है।