मप्र की 23 हजार की कुछ ग्राम पंचायतों पर शासन का नही है लगाम ,,?
मन्दसौर जिले की कुछ ग्राम पंचायतों के ताले ही नही खुलते जवाब दार अधिकारी भी लापरवाह ,,होते है कभी पंचायतों में जाकर देखते तक नही वह उस पंचायत में सरपंच सचिव क्या अपना कर्तव्य निभा रहे या नही ।
कोरिना 19 के समय केंद्र और राज्य शासन द्वारा राहत राशि गरीबो को ग्राम पंचायतों द्वारा दी जाना थी लेकिन पंचायतो को अपने घर की दुकान समझने वाले सरपंच सचिवों ने कोरिना 19 में लाखों रुपये का कागजी खाना पूर्ति कुछ वरिस्ट अधिकारी की जेबे गर्म करके खेल खेला गया गरीबो को जो राशन ,राशि,मूलभूत व्यवसाथ दी जाना थी वो धरातल पर कही भी नही दिखाई दी ,,,,,गरीबो के नाम से भरपूर खाना पूर्ति की गई ग्रामिड क्षेत्र के लोगो ने बताया कि हम गरीबो को पंचायत की और से कोई राहत राशि राहत राशन नही मिला है लेने भी गए तो उन्होंने मना करदिया ये हालात है पंचायतो गेंहू चावल शाशन ने उपलब्ध करवाए ।
नरेगा में कार्य करने वालो को कोरिना 19 के बाद केंद्रीय गवरमेंट ने पूर्व की मजदूरी की राशि से अब 190 रुपये प्रति मजदूर की करदी है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये उठता है की ग्राम पंचायतो में नरेगा में कार्य करने वाले मजदूर क्या वास्तविक मजदूर है कुछ पंचायतो में तो रसूकदार लोगो ने अपने नरेगा में कार्य हाजरी के जाब कार्ड बनवालिये है कुछ पंचायतो में तो सरपंच सचिवों ने अपने ही परिवार के लोगो के नरेगा में कार्य करने के जाब कार्ड बनवा रखे ,,ये एक जांच का विषय बनता है ।
पीसीओ -की एक जवाबदारी होती है कि समय समय पर पंचायतो के कार्य देखे लेकिन पीसीओ जनपदों में बैठ कर ही फोन से पंचायतो की जानकारी लेते रहते है बल्कि उनकी सर्वीस नोकरी इसी नाम की है कि फील्ड में जाकर पंचायतो के कार्य को जांच करे लेकिन कुछ आलसी पीसीओ नही जाते है फील्ड वर्क में । मप्र के
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